उत्तराखंड में दिवाली के 11 दिनों के बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को ईगास बग्वाल यानी बूढ़ी दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है। इस बार दिवाली 20 अक्टूबर को मनाई गई थी, ऐसे में ईगास बग्वाल इस साल 1 नवंबर को मनाया जाएगा।
मान्यताओं के अनुसार दिवाली का त्यौहार भगवान राम के अयोध्या लौटने पर मनाया जाता है, लेकिन गढ़वाल में उनके लौटने की खबर 11 दिन बाद आई थी। यही कारण है कि पहाड़ों में कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को दिवाली मनाई जाती है।
ईगास बग्वाल को बूढ़ी दिवाली भी कहा जाता है, इस दिन गाय और बैल की पूजा की जाती है। रात को सभी लोग पारंपरिक भैलो खेलकर जश्न मनाते है। भैलो एक तरह की मशाल यानी आग की गेंद होती है। जिसे जलाकर घुमाया जाता है और साथ ही ढोल दमों की थाप में डांस किया जाता है।
इस कहानी को वीर माधो सिंह भंडारी से भी जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि जब गढ़वाल रियासत में राजा महीपति शाह का शासन हुआ करता था तो उस समय रियासत का सबसे बड़ा दुश्मन तिब्बत था
रियासत के राजा ने माधो सिंह को तिब्बत के राजा के साथ युद्ध करने भेजा और आदेश दिया कि दिवाली से एक दिन पहले युद्ध जीत कर सेना के साथ श्री नगर लौट आए।
माधो सिंह ने युद्ध तो जीत लिया लेकिन इसकी सूचना रियासत तक नहीं पहुंची। दिवाली तक कोई सूचना न मिलने पर सबको लगा कि सेना युद्ध में हार गई और सेना मर गई। इस कारण राजा ने घोषणा कर दी कि इस बार दिवाली नहीं मनाई जाएगी।
खबर से पूरा गढ़वाल शोक में डूब गया और दिवाली नहीं मनाई, लेकिन शोक में डूबे गढ़वाल में खुशी की एक खबर आई कि तिब्बत युद्ध में माधो सिंह भंडारी की जीत हुई है और वो सेना के साथ जल्द ही श्री नगर पहुंच जाएंगे।
इसके बाद राजा ने ऐलान कर दिया कि जब माधो सिंह भंडारी श्रीनगर पहुंचेंगे तभी दीपावली मनाई जाएगी। दिवाली के 11 दिनों बाद वे श्रीनगर आए थे और इस दिन सारी रियासत को सजाया गया और दिवाली मनाई गई। तभी से गढ़वाल में ईगास बग्वाल की शुरुआत हुई।
दिनांक – 31.10.2024

